मंगलवार, 14 जुलाई 2009

भारतवासी


हम भारत के भारतवासी जग में हम नाम कमायेंगे।

जिस मिट्टी में है जन्म लिया, उसका ये कर्ज़ चुकायेंगे।

हम भारत के...

मज़हब के लिये लडते रहना,ये सब से बडी नादानी है।

वसुधैव कुटुंब कि भावना का,घर घर में दीप जलायेंगे।

हम भारत के...

आज़ादी को पाने के लिये जो शहीद हुए थे वेदी प्र।

हम भी उस नक्शे कदम चलकर वीरों में नाम कमायेंगे।

हम भारत के..

इस मिट्टी से सीखा हमने हर मज़हब को है अपनाना।

गंगा-जमनी तहेज़ीब से हम, सारा भारत चमकायेंगे।

हम भारत के...

जब भी है मुसीबत आन पडी, भारत ने हार नहिं मानी।

हम एक थे, एक है , एक रहकर, एकता का सबक सिख़ाएंगे।

हम भारत के....

मंगलवार, 23 सितंबर 2008

ओ रंगों को बाँटनेवालो




ओ इन्सान को बाँटनेवालो, क़ुदरत को तो बाँट के देख़ो।
ओ भगवान को बाँटनेवालो, क़ुदरत को तो बाँट के देख़ो।
कोइ कहे रंग लाल है मेरा, कोइ कहे हरियाला मेरा।
रंग से ज़ुदा हुए तुम कैसे ओ रंगों को बाँटनेवालो? ओ इन्सान को....
आसमाँन की लाली बाँटो, पत्तों की हरियाली बाँटो,
रंग सुनहरा सुरज का और चंदा का रुपहरी बाँटो।
मेघधनुष के सात रंग को बाँट सको तो बाँट के देखो। ओ इन्सान को....
आँधी आइ धूल उठी जब, उससे पूछ लिया जो मैने।
कौन देश क्या धर्म तुम्हारा, वो बोली मेरा जग सारा।
मुझको हवा ले जाये जीधर भी में उस रूख़ पे उडके जाउं।
ना कोइ मज़हब टोके मुझको, ना कोइ सीमा रोके मुझको।
मिट्टी के इस बोल को बाँटो ओ सरहद को बाँटनेवालो... ओ इन्सान को....
नदिया अपने सूर में बहती, गाती और इठ्लाती चलदी।
मैने पूछा उस नदिया से कौन देश है चली किधर तू?
हसती गाती नदिया बोली, राह मिले मैं बहती जाउँ।
ना कोइ मज़हब टोके मुझको, ना कोइ सीमा रोके मुझको।
नदिया के पानी को बाँटो, ओ मज़हब को बाँटनेवालो। ओ इन्सान को....
फ़ुल ख़िला था इस धरती पर, महेक चली जो हवा के रुख़ पर।
मैने पूछा उस ख़ुश्बु से चली कहाँ खुश्बु फ़ैलाकर।
ख़ुश्बु बोली कर्म है मेरा, दुनिया में ख़ुशबु फ़ैलाना।
ना कोइ मज़हब टोके मुझको, ना कोइ सीमा रोके मुझको।
फ़ुलों की ख़ुश्बु को बाँटो, ओ गुलशन को बाँटनेवालो। ओ इन्सान को....
उडते पँछी से जो मैने पूछ लिया जो एक सवाल।
कौन देश क्या धर्म तुम्हारा, हँस के वो ऐसे गया टाल!
पँछी बोला सारी धरती, हमको तो लगती है अच्छी।
ना कोइ मज़हब टोके मुझको, ना कोइ सीमा रोके मुझको।
आसमाँन को बाँट के देख़ो, उँचनीच को बाँटनेवालो। ओ इन्सान को....

सोमवार, 4 अगस्त 2008

शर्म उनको मगर नहीं आती !

निम्न लिखित ख़त शहरोज़ के ब्लाग " शहरोज़ का रचना संसार " पर लिखे गए एक कमेन्ट का हिस्सा है, चूंकि जो विषय शहरोज ने उठाया है वह राष्ट्रीय महत्त्व रखता है अतः यहाँ देना मैंने आवश्यक समझा
" ...........आपने कट्टर धार्मिक असहिष्णुता, जो हमें आपस में लड़ा दे, उसका विरोध करने की हिम्मत की है ! मुझे चिंता यह है कि कुछ लोग आप जैसे सच्चे मुसलमान को भी काफिर या काफिरों का दोस्त न समझ लें ! आपके ही कहे हुए कुछ शब्द मुझे याद आ रहे हैं !

"तंग-जाहिद नज़र ने मुझे काफिर समझा

और काफिर ये समझता है मुसलमाँ हूँ मैं"
ये हम जैसे तमाम लोगों की पीडा है.....

यह अफ़सोस जनक है कि आप जैसे लोगों की इस पीड़ा को कोई नही समझना चाहता , बड़े बड़े विद्वान् यहाँ ब्लाग जगत में ही कार्य कर रहे हैं, मगर कोई यहाँ आकर साथ नही खडा होता ! मैं अपने धर्म को बहुत प्यार करता हूँ मगर मैं अपने मुस्लिम भाइयों व मुस्लिम धर्म को भी उतना ही आदर कर, उन्हें यह अहसास दिलाना चाहता हूँ कि अधिकतर देशवासी उन्हें व उनके धर्म का उतना ही आदर करते हैं जितना अपने का ! और मुझे पूरा विश्वास है कि अधिकतर मुस्लिम भी यही सोचते हैं ! फिर भी प्रतिक्रियावादी इन मीठे दरियाओं को सुखाने का, कोई हथकंडा खाली नही जाने देते ! मुझे नही लगता कि आप जैसे लोगों से अधिक कोई और धार्मिक सद्भाव रखता होगा ! मेरा व्यक्तिगत विचार है कि धर्म के दुरुपयोग करने बालों को बेनकाब करना ही चाहिए ! मगर इस नाज़ुक विषय पर सिर्फ़ उन्ही को आगे आना चाहिए जिसको इसकी समझ हो ! हमें अपने अपने धर्म को सम्मान देना है, और देना चाहिए ! धर्म सबसे ऊपर है, और अपने परिवार में संस्कार और सभ्यता धर्म की ही देन हैं ! मगर धर्म के तथाकथित अपमान के नाम पर उसका दुरुपयोग नहीं होने देना चाहिए ! दुःख तब होता है जब एक बेहद अच्छे और निश्छल व्यक्ति के ऊपर देश तोड़ने, विद्वेष फैलाने, और उसके अपने ही धर्म के अपमान का आरोप उसके ऊपर मढ़ दिया जाता है ! आप चलते रहें , मेरे जैसे बहुत से लोग आपको देख रहे हैं और आपका साथ भी देंगे ! यगाना के बारे में कुछ और तफसील दें, उन्हें पढ़ कर अच्छा लगेगा !"

धर्म की परिभाषा लोग अपनी अपनी श्रद्धा और समझ के हिसाब से लगाते हैं , मगर यह नितांत व्यक्तिगत होना चाहिए ! धर्म को साइंस और वाद विवाद की कसौटी पर नहीं आजमाया जा सकता मगर लोग अक्सर इस विषय पर दो दो हाथ करने को हर समय तैयार रहते हैं ! हर मज़हब में सबसे अधिक किसी बात पर जोर दिया गया है, तो वह है आपस में मुहब्बत से रहना, और हम धर्म के जानकार सिर्फ़ इसे ही याद नही रख पाते ! कहते हैं गुरु के बिना सद्गति नहीं मिलती तो कहाँ मिलेंगे हमें गुरु ? आज देश को जरूरत है एक कबीर की जो हम सब को सही राह दिखलायें ! उनके शब्द .....

रहना नहीं देस बिगाना है
यह संसार कागज की पुड़िया, बूँद पड़े घुल जाना है
यह संसार काँटों की बाड़ी, उलझ उलझ मर जाना है
यह संसार झाड़ अरु झंखार, आग लगे गल जाना है
कहत कबीर सुनो भाई साधो ! सतगुरु नाम ठिकाना है

और मेरा यह विश्वास है कि हम सब में वह चेतना अवश्य जागेगी, एक दिन आएगा जब रामू को हर गोल टोपी और दाढ़ी बाले चचा की आंखों में मुहब्बत नज़र आने लगेगी और मन्दिर के आगे से गुजरता हुआ रहीम, पुजारी को आदाब करके ही आगे जाएगा ! मगर मौलाविओं और पुजारिओं को समझाने के लिए कबीर कब आयेंगे ?

मंगलवार, 29 जुलाई 2008

मेरे वतन के वास्ते




एक नारा आज दो अपने वचन के वास्ते।
कारवाँ अब ये चला है खुद अमन के वास्ते।
क्या लडाइ क्या है हिंसा क्यों ये नफरत है रवाँ?
क्यों है ये जलती ज़मीं, और क्यो है ये जलता जहाँ?
खोल दो पंछी के पर उपर गगन के वास्ते।
कैसा मजहब कैसा इमाँ जिसमें बहता खून है?
कैसे है भटके ये नादाँ, दिल में केसी धून है?
केसी छेडी है लडाइ एक कफ़न के वास्ते।
है यहीं जन्नत, यहीं दोज़ख, यहीं है जिंदगी।
बाँट के देखो खुशी तो पाओगे तुम भी खुशी।
प्यार बाँटो नौजवानों अंजुमन के वास्ते।
तुम को ये कैसा गुमाँ क्या तुम कोइ भगवान हो?
जो हुए गुमराह पथ से तुम तो बस नादान हो।
क्यों चले हो राह तुम अपने पतन के वास्ते।
आयेगा ये दौर फिर से, होगी ज्योतिर्मय ज़मीं।
हर तरफ़ से फ़िर उठेगी प्यार की एक रागिनी।
”राज़” होगा मरहबा मेरे वतन के वास्ते।

गुरुवार, 24 जुलाई 2008

मेरे वतन

मेरे वतन, मेरे वतन, मेरे वतन हिंदोसतां।
अपना गगन, अपना चमन, अपना वतन हिंदोस्तां।
गाते चलें ये गीत हम, बढ़ते रहे अपने कदम।
सब साथ हैं तो क्या है ग़म, जीतेंगे हम, हममें है दम। मेरे वतन..(2)
हिंदू भी हैं, मुस्लिम भी हैं, यहां शिख़ भी ईसाई भी।
ऐसे रहें हमारा संग-संग जैसे रहे परछाई भी.. मेरे वतन..(2)
यहां मंदिरों में आरती और मस्जिदों में अज़ान है।
गीता के श्लोक यहाँ कभी, कभी आयतें कुरान है।.. मेरे वतन..(2)
त्यौहारों का ये देश है, यहां ईद और दीवाली है,
रंगत यहाँ राखी की है और रंगबिरंगी होली है।.. मेरे वतन..(2)
गंगा यमुना सरस्वती, गोदावरी और नर्मदा,
नदियां हमारे देश की, बहती रहे हरदम सदा।.. मेरे वतन..(2)
ये धरती, गांधी, नहेरु की, ये धरती है सरदार की,
जिसने दी अपनी जान वो भगत सिंह और आज़ाद की।.. मेरे वतन..(2)
कश्मीर से कन्याकुमारी तक बसा मेरा वतन,
नज़रें उठाये कोई क्या? ईस पर लुटादें जानो तन।॥ मेरे वतन..(2)





कारवाँ ए अमन

यह कारवाँ है, अमन-शांति का, देशप्रेम-भाईचारे का। इस कारवाँ का मकसद है ‘एक शांति भरा समृद्ध देश’। इस कारवाँ में धर्म-जाति, ऊंच-नीच,बडे-छोटे, गरीब-अमीर का कोई भेदभाव नहिं है। इस कारवॉं में कोई भी शामिल हो सकता है।

तो फ़िर क्या आप तैयार हैं इस ” कारवाँ ए अमन “ में शामिल होने को? आईए चलिये हमारे साथ शरीक हो जाईए। इस में देशप्रेम कि भावना जगानेवाली, सर्व धर्म समभाव की रचानाएँ बाँटी जायेंगी। आप भी अपनी रचनाऐं भेज सकते है । स्वागत है आपका...।