एक नारा आज दो अपने वचन के वास्ते।
कारवाँ अब ये चला है खुद अमन के वास्ते।
क्या लडाइ क्या है हिंसा क्यों ये नफरत है रवाँ?
क्यों है ये जलती ज़मीं, और क्यो है ये जलता जहाँ?
खोल दो पंछी के पर उपर गगन के वास्ते।
कैसा मजहब कैसा इमाँ जिसमें बहता खून है?
कैसे है भटके ये नादाँ, दिल में केसी धून है?
केसी छेडी है लडाइ एक कफ़न के वास्ते।
है यहीं जन्नत, यहीं दोज़ख, यहीं है जिंदगी।
बाँट के देखो खुशी तो पाओगे तुम भी खुशी।
प्यार बाँटो नौजवानों अंजुमन के वास्ते।
तुम को ये कैसा गुमाँ क्या तुम कोइ भगवान हो?
जो हुए गुमराह पथ से तुम तो बस नादान हो।
क्यों चले हो राह तुम अपने पतन के वास्ते।
आयेगा ये दौर फिर से, होगी ज्योतिर्मय ज़मीं।
हर तरफ़ से फ़िर उठेगी प्यार की एक रागिनी।
”राज़” होगा मरहबा मेरे वतन के वास्ते।


