सोमवार, 4 अगस्त 2008

शर्म उनको मगर नहीं आती !

निम्न लिखित ख़त शहरोज़ के ब्लाग " शहरोज़ का रचना संसार " पर लिखे गए एक कमेन्ट का हिस्सा है, चूंकि जो विषय शहरोज ने उठाया है वह राष्ट्रीय महत्त्व रखता है अतः यहाँ देना मैंने आवश्यक समझा
" ...........आपने कट्टर धार्मिक असहिष्णुता, जो हमें आपस में लड़ा दे, उसका विरोध करने की हिम्मत की है ! मुझे चिंता यह है कि कुछ लोग आप जैसे सच्चे मुसलमान को भी काफिर या काफिरों का दोस्त न समझ लें ! आपके ही कहे हुए कुछ शब्द मुझे याद आ रहे हैं !

"तंग-जाहिद नज़र ने मुझे काफिर समझा

और काफिर ये समझता है मुसलमाँ हूँ मैं"
ये हम जैसे तमाम लोगों की पीडा है.....

यह अफ़सोस जनक है कि आप जैसे लोगों की इस पीड़ा को कोई नही समझना चाहता , बड़े बड़े विद्वान् यहाँ ब्लाग जगत में ही कार्य कर रहे हैं, मगर कोई यहाँ आकर साथ नही खडा होता ! मैं अपने धर्म को बहुत प्यार करता हूँ मगर मैं अपने मुस्लिम भाइयों व मुस्लिम धर्म को भी उतना ही आदर कर, उन्हें यह अहसास दिलाना चाहता हूँ कि अधिकतर देशवासी उन्हें व उनके धर्म का उतना ही आदर करते हैं जितना अपने का ! और मुझे पूरा विश्वास है कि अधिकतर मुस्लिम भी यही सोचते हैं ! फिर भी प्रतिक्रियावादी इन मीठे दरियाओं को सुखाने का, कोई हथकंडा खाली नही जाने देते ! मुझे नही लगता कि आप जैसे लोगों से अधिक कोई और धार्मिक सद्भाव रखता होगा ! मेरा व्यक्तिगत विचार है कि धर्म के दुरुपयोग करने बालों को बेनकाब करना ही चाहिए ! मगर इस नाज़ुक विषय पर सिर्फ़ उन्ही को आगे आना चाहिए जिसको इसकी समझ हो ! हमें अपने अपने धर्म को सम्मान देना है, और देना चाहिए ! धर्म सबसे ऊपर है, और अपने परिवार में संस्कार और सभ्यता धर्म की ही देन हैं ! मगर धर्म के तथाकथित अपमान के नाम पर उसका दुरुपयोग नहीं होने देना चाहिए ! दुःख तब होता है जब एक बेहद अच्छे और निश्छल व्यक्ति के ऊपर देश तोड़ने, विद्वेष फैलाने, और उसके अपने ही धर्म के अपमान का आरोप उसके ऊपर मढ़ दिया जाता है ! आप चलते रहें , मेरे जैसे बहुत से लोग आपको देख रहे हैं और आपका साथ भी देंगे ! यगाना के बारे में कुछ और तफसील दें, उन्हें पढ़ कर अच्छा लगेगा !"

धर्म की परिभाषा लोग अपनी अपनी श्रद्धा और समझ के हिसाब से लगाते हैं , मगर यह नितांत व्यक्तिगत होना चाहिए ! धर्म को साइंस और वाद विवाद की कसौटी पर नहीं आजमाया जा सकता मगर लोग अक्सर इस विषय पर दो दो हाथ करने को हर समय तैयार रहते हैं ! हर मज़हब में सबसे अधिक किसी बात पर जोर दिया गया है, तो वह है आपस में मुहब्बत से रहना, और हम धर्म के जानकार सिर्फ़ इसे ही याद नही रख पाते ! कहते हैं गुरु के बिना सद्गति नहीं मिलती तो कहाँ मिलेंगे हमें गुरु ? आज देश को जरूरत है एक कबीर की जो हम सब को सही राह दिखलायें ! उनके शब्द .....

रहना नहीं देस बिगाना है
यह संसार कागज की पुड़िया, बूँद पड़े घुल जाना है
यह संसार काँटों की बाड़ी, उलझ उलझ मर जाना है
यह संसार झाड़ अरु झंखार, आग लगे गल जाना है
कहत कबीर सुनो भाई साधो ! सतगुरु नाम ठिकाना है

और मेरा यह विश्वास है कि हम सब में वह चेतना अवश्य जागेगी, एक दिन आएगा जब रामू को हर गोल टोपी और दाढ़ी बाले चचा की आंखों में मुहब्बत नज़र आने लगेगी और मन्दिर के आगे से गुजरता हुआ रहीम, पुजारी को आदाब करके ही आगे जाएगा ! मगर मौलाविओं और पुजारिओं को समझाने के लिए कबीर कब आयेंगे ?